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भटकने का परिणाम
1 इसलिए आओ मसीह की शिक्षा की आरम्भ की बातों को छोड़कर, हम सिद्धता की ओर बढ़ते जाएँ, और मरे हुए कामों से मन फिराने, और परमेश्वर पर विश्वास करने, 2 और बपतिस्मा और हाथ रखने, और मरे हुओं के जी उठने, और अनन्त न्याय की शिक्षारूपी नींव, फिर से न डालें। 3 और यदि परमेश्वर चाहे, तो हम यही करेंगे। 4 क्योंकि जिन्होंने एक बार ज्योति पाई है, और जो स्वर्गीय वरदान का स्वाद चख चुके हैं और पवित्र आत्मा के भागी हो गए हैं, 5 और परमेश्वर के उत्तम वचन का और आनेवाले युग की सामर्थ्य का स्वाद चख चुके हैं* 6:5 परमेश्वर के उत्तम वचन .... स्वाद चख चुके हैं: यहाँ पर अर्थ हैं कि उन्होंने परमेश्वर की सच्चाई का महामहिम अनुभव किया था; उन्होंने देखा और उसकी अच्छाई का आनन्द लिया था।। 6 यदि वे भटक जाएँ; तो उन्हें मन फिराव के लिये फिर नया बनाना अनहोना है; क्योंकि वे परमेश्वर के पुत्र को अपने लिये फिर क्रूस पर चढ़ाते हैं और प्रगट में उस पर कलंक लगाते हैं। 7 क्योंकि जो भूमि वर्षा के पानी को जो उस पर बार बार पड़ता है, पी पीकर जिन लोगों के लिये वह जोती-बोई जाती है, उनके काम का साग-पात उपजाती है, वह परमेश्वर से आशीष पाती है। 8 पर यदि वह झाड़ी और ऊँटकटारे उगाती है, तो निकम्मी और श्रापित होने पर है, और उसका अन्त जलाया जाना है। (यूह. 15:6)
9 पर हे प्रियों यद्यपि हम ये बातें कहते हैं तो भी तुम्हारे विषय में हम इससे अच्छी और उद्धारवाली बातों का भरोसा करते हैं। 10 क्योंकि परमेश्वर अन्यायी नहीं, कि तुम्हारे काम, और उस प्रेम को भूल जाए, जो तुम ने उसके नाम के लिये इस रीति से दिखाया, कि पवित्र लोगों की सेवा की, और कर भी रहे हो। 11 पर हम बहुत चाहते हैं, कि तुम में से हर एक जन अन्त तक पूरी आशा के लिये ऐसा ही प्रयत्न करता रहे। 12 ताकि तुम आलसी न हो जाओ; वरन् उनका अनुकरण करो, जो विश्वास और धीरज के द्वारा प्रतिज्ञाओं के वारिस होते हैं।
विश्वसनीय प्रतिज्ञा
13 और परमेश्वर ने अब्राहम को प्रतिज्ञा देते समय† 6:13 परमेश्वर ने अब्राहम को प्रतिज्ञा देते समय: कि वह उसे आशीष देगा, और उसके वंश को आकाश के तारे के रूप में बढ़ाएगा। (उत्प 22: 16-17) जबकि शपथ खाने के लिये किसी को अपने से बड़ा न पाया, तो अपनी ही शपथ खाकर कहा, 14 “मैं सचमुच तुझे बहुत आशीष दूँगा, और तेरी सन्तान को बढ़ाता जाऊँगा।” (उत्प. 22:17) 15 और इस रीति से उसने धीरज धरकर प्रतिज्ञा की हुई बात प्राप्त की। 16 मनुष्य तो अपने से किसी बड़े की शपथ खाया करते हैं और उनके हर एक विवाद का फैसला शपथ से पक्का होता है। (निर्ग. 22:11) 17 इसलिए जब परमेश्वर ने प्रतिज्ञा के वारिसों पर और भी साफ रीति से प्रगट करना चाहा, कि उसकी मनसा बदल नहीं सकती तो शपथ को बीच में लाया। 18 ताकि दो बे-बदल बातों के द्वारा जिनके विषय में परमेश्वर का झूठा ठहरना अनहोना है, हमारा दृढ़ता से ढाढ़स बन्ध जाए, जो शरण लेने को इसलिए दौड़े हैं, कि उस आशा को जो सामने रखी हुई है प्राप्त करें। (गिन. 23:19, 1 शमू. 15:29) 19 वह आशा हमारे प्राण के लिये ऐसा लंगर है जो स्थिर और दृढ़ है‡ 6:19 वह आशा हमारे प्राण के लिये ऐसा लंगर है जो स्थिर और दृढ़ है: जो काम लंगर जहाज के लिये करता है वही काम आशा आत्मा के लिये पूरा करती हैं। यह इसे स्थिर और सुरक्षित बनाता है।, और परदे के भीतर तक पहुँचता है। (गिन. 23:19, 1 तीमु. 2:13) 20 जहाँ यीशु ने मलिकिसिदक की रीति पर सदाकाल का महायाजक बनकर, हमारे लिये अगुआ के रूप में प्रवेश किया है।
*6:5 6:5 परमेश्वर के उत्तम वचन .... स्वाद चख चुके हैं: यहाँ पर अर्थ हैं कि उन्होंने परमेश्वर की सच्चाई का महामहिम अनुभव किया था; उन्होंने देखा और उसकी अच्छाई का आनन्द लिया था।
†6:13 6:13 परमेश्वर ने अब्राहम को प्रतिज्ञा देते समय: कि वह उसे आशीष देगा, और उसके वंश को आकाश के तारे के रूप में बढ़ाएगा। (उत्प 22: 16-17)
‡6:19 6:19 वह आशा हमारे प्राण के लिये ऐसा लंगर है जो स्थिर और दृढ़ है: जो काम लंगर जहाज के लिये करता है वही काम आशा आत्मा के लिये पूरा करती हैं। यह इसे स्थिर और सुरक्षित बनाता है।